विश्व प्रसिद्ध ‘ढोकरा शिल्प कला’ आखिर क्यों है इतनी खास……? – विशेष रिपोर्ट

हमारा देश भारत आदि काल से ही कला और संस्कृति की पुण्यभूमि रही है। इस देश का अद्भुत शिल्प सौंदर्य विश्व को चमत्कृत कर देता है। सांस्कृतिक विरासत और पुरातात्विक अवशेषों से यह ज्ञात होता है कि ईसा पूर्व से ही यहां वास्तुकला, मूर्तिकला और धातुकला का विकास हो चुका था। छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में ऐसी ही एक शिल्प कला को आदिवासियों ने अब तक संजो कर रखा है। नाम है – ढोकरा शिल्प।

वही इस शिल्प कला का उपयोग करके बनाई गई मूर्ति का सबसे पुराना नमूना मोहनजोदड़ो की खुदाई से प्राप्त होता है। खुदाई में नृत्य करती हुई लड़की की प्रसिद्ध मूर्ति है, जिसे ढोकरा शिल्प द्वारा ही बनाया गया, ऐसा माना जाता है। ढोकरा शिल्पकार कांसे, मिट्टी और मोम के धागे के सहारे ऐसी कलाकृति निर्मित करते हैं कि देखने वाला सुखद आश्चर्य में पड़ जाता है।

अब आइये, और जानते हैं विश्व प्रसिद्ध ढोकरा शिल्प के बारे में कुछ रोचक तथ्य …

यह ढोकरा शिल्प आखिर इतनी खास क्यों है कोई तो वजह रही ही होगी। तो अब आपको बता दे कि ढोकरा शिल्प में आकृति बनाने की प्रक्रिया जटिल होती है। एक कृति बनाने में सप्ताह भर का समय लग जाता है। हर एक चरण में मिट्टी का प्रयोग होता है। ढोकरा शिल्प का प्रयोग कर सुंदर कलाकृति बनाने वाली बस्तर की खिलेन्द्री नाग बताती हैं कि सबसे पहले हम मिट्टी का एक ढांचा तैयार करते हैंए जिसमें काली मिट्टी को भूसे के साथ मिलाते हैं। काली मिट्टी जब सूख जाती है, तो उसके बाद लाल मिट्टी से लेपाई करते हैं।

वही उसके बाद मधुमक्खी के छत्ते से निकले मोम का लेप लगाते हैं। सूखने के बाद मोम के पतले धागे से उस पर बारीकी से आकृति बनाते हैं। इस ढांचे को धूप में सुखाते हैंए फिर मिट्टी से ढकते हैं। इसके बाद पीतल, टीन, तांबे जैसी धातुओं को हजार डिग्री सेल्सियस पर गर्म करके पिघलाते हैं। जो ढांचा सुखाया गया था उसे भी गर्म किया जाता हैए जिससे मोम पिघल जाता है। ढांचे में खाली हुए स्थान पर पिघली हुई धातु को डालते हैं और फिर चार-छह घंटे ठंडा करते हैं। इस प्रकिया से आकृति को तैयार किया जाता है।

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