राजधानी पर ‘अधिकार’ को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच नया नहीं है यह विवाद

शंभू नाथ गौतम (वरिष्ठ पत्रकार) : जब हम दिल्ली में रहते हैं तो हमारी चलेगी । भले ही तुम्हारी चुनी हुई सरकार क्यों न हो । बीच-बीच में तुम हमसे आगे बढ़ने की कोशिश करते हो, तभी हमें यह कदम उठाना पड़ता है । केंद्र की भाजपा सरकार अरविंद केजरीवाल की सरकार को पिछले काफी समय से यही बताने का प्रयास कर रही है । लेकिन आम आदमी पार्टी की सरकार कहां मानने वाली है । ‘मुख्यमंत्री केजरीवाल पिछले कई वर्षों से कहते आ रहे हैं कि दिल्ली में उनका अधिकार है, भाजपा सरकार हमारे कामों में अड़ंगा डालती है’ । अब एक बार फिर दिल्ली में पहला अधिकार किसका है, इसको लेकर भाजपा और केजरीवाल सरकार के बीच ठन गई है । आइए अब आपको बताते हैं पूरा मामला क्या है । बता दें कि पिछले दिनों दिल्ली के उपराज्यापल अनिल बैजल को और अधिक अधिकार देने वाले बिल को केंद्रीय कैबिनेट ने मंजूरी दी है। ‘गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी’ दिल्ली एक्ट में कुछ संशोधन किए हैं । इस फैसले के बाद दिल्ली विधानसभा से अलग भी कुछ फैसलों पर उपराज्यपाल का अधिकार होगा। ऐसे में जाहिर है कि केजरीवाल सरकार को कुछ फैसलों के लिए उपराज्यपाल की अनुमति हर हाल में लेनी होगी। संशोधन के तहत दिल्ली सत्तासीन राज्य सरकार को अब विधायिका से जुड़े फैसलों को उपराज्यपाल के पास 15 दिन पहले देना होगा। इतना ही नहीं, किसी भी प्रशासनिक फैसलों को करीब एक सप्ताह पहले मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के पास भेजना होगा। आपको बता दें कि केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते दिल्ली के उपराज्यपाल को कई अधिकार मिले हुए हैं। इसी अधिकार को लेकर केजरीवाल सरकार कई बार विरोध जता चुकी है। दूसरी ओर केंद्र सरकार का कहना है कि अनिल बैजल के अधिकार बढ़ाने का मकसद है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार से उनका टकराव कम हो सके ।

दिल्ली की सियासत को लेकर वर्ष 2015 से ही केंद्र और केजरीवाल के बीच जारी है घमासान :-

राजधानी पर अधिकारों को लेकर लगभग 6 वर्षों से केंद्र सरकार और केजरीवाल सरकार के बीच घमासान चला आ रहा है ।‌ समय-समय पर दिल्ली किसकी दोनों सरकारों के बीच सियासी जंग छिड़ जाती है ।‌ बता दें कि वर्ष 2015 में दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के बाद से ही आम आदमी पार्टी सरकार और केंद्र सरकार के बीच ठनी हुई है । मालूम हो कि केंद्र और केजरीवाल सरकार के बीच विवाद दिल्ली हाईकोर्ट से होता हुआ सर्वोच्च अदालत तक पहुंच चुका है । सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों को नसीहत के साथ कुछ प्रावधान भी दिए थे, जिसके बाद मामला शांत हुआ। गौरतलब है कि संविधान की ‘धारा 239 एए’ के मुताबिक, दिल्ली की चुनी हुई सरकार की सलाह मानने के लिए उपराज्यपाल बाध्य नहीं हैं। वहीं देश के अन्य राज्यों में राज्यपाल चुनी हुई सरकार के फैसले मानने के लिए बाध्य होते हैं । दरअसल, केंद्र शासित प्रदेश होने के नाते दिल्ली में हालात ठीक अन्य राज्यों के विपरीत हैं । दिल्ली में उपराज्यपाल जब चाहें दिल्ली में सत्तासीन राज्य सरकार के फैसले और आदेश पलट सकते हैं या उसे खारिज भी कर सकते हैं। दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अंडर में आती है, ऐसे में कानून व्यवस्था का मसला भी केंद्र सरकार के अधीन आता है। दिल्ली में सरकार चलाने वाली सरकारें लगातार दिल्ली पुलिस को राज्य के अधीन लाने की मांग करती रहीं हैं। हाल में ही दिल्ली दंगों के मामलों में वकील तय करने में उपराज्यपाल और केजरीवाल के बीच टकराव देखा गया । कोरोना संकट काल के दौरान दिल्ली के अस्पतालों में बाहरियों के इलाज पर रोक लगाने के दिल्ली सरकार के फैसले को उपराज्यपाल अनिल बैजल ने पलट दिया था, उस समय बैजल ने तर्क दिया था कि इससे समानता, जीवन जीने के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा था। इसमें स्वास्थ्य का अधिकार भी शामिल है । इसके बाद उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार के संबंधों में खटास देखी गई थी ।

दिल्ली में चुनी हुई सरकार के अधिकारों का किया जा रहा है हनन: सिसोदिया 

केंद्रीय कैबिनेट के दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल के अधिकार बढ़ाए जाने पर आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा । ‘मनीष सिसोदिया ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि उसने राष्ट्रीय राजधानी की चुनी हुई सरकार के मुख्यमंत्री और मंत्रियों के अधिकारों को छीनकर वो शक्ति उप-राज्यपाल को देने का कानून पास किया है’, उन्होंनेेे कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार चाहती है कि दिल्ली सरकार स्वतंत्र होकर काम न कर पाए’ । सिसोदिया ने साफ कहा कि केंद्र अब दिल्ली के उप-राज्यपाल को इतनी पावर देने जा रही है, जिससे वे दिल्ली सरकार के कामों को रोक सके। उन्होंने कहा कि इसके बाद दिल्ली सरकार के पास निर्णय लेने के अधिकार नहीं होंगे बल्कि एलजी के पास होगा । डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि यह लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ है । यहां हम आपको बता दें कि दिल्ली में सत्तासीन कांग्रेस सरकार से लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार तक सबने पूर्व राज्य के दर्जे की मांग की है । दिल्ली में सत्तासीन सभी सरकारों ने माना है कि पूर्ण राज्य का दर्जा मिलना चाहिए। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 में आम आदमी पार्टी ने पूर्व राज्य के दर्जे को मुख्य मुद्दा बनाया था । पिछले काफी समय से केंद्र की शक्तियों को रोकने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लगातार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करते चले आ रहे हैं । अब एक बार फिर राजधानी दिल्ली पर अधिकारों को लेकर केंद्र के इस नए फरमान को लेकर केजरीवाल और भाजपा सरकार के बीच टकराव की स्थिति है ।

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