शंभू नाथ गौतम (वरिष्ठ पत्रकार) : देश में उल्लास और उमंग छाया है । वर्ष के पहले त्योहार के आगमन पर लोग खुशियों में सराबोर हैं । आज एक ऐसा लोकप्रिय त्योहार है जो इस व्यस्तता भरे माहौल में सुकून देता है । जी हां हम बात कर रहे हैं मकर संक्रांति की । यह लोकप्रिय त्योहार, जिसे लोहड़ी के एक दिन बाद मनाया जाता है। यह पर्व पूरे देश भर में अलग-अलग नामों से जाना जाता है । मौसम की दृष्टि से भी यह महत्वपूर्ण माना जाता है, इसी दिन से सर्दियों की विदाई और बसंत ऋतु की शुरुआत होती है । आपको बता दें कि मकर संक्रांति पर्व के बाद से ही मौसम में भी परिवर्तन आना शुरू हो जाता है । बता दें कि बसंत ऋतु वर्ष की एक ऋतु है जिसमें वातावरण का तापमान सुखद रहता है। भारत में यह फरवरी से मार्च तक होती है। इस ऋतु की विशेषता है मौसम का गरम होना, फूलों का खिलना, पौधों का हरा भरा होना और बर्फ का पिघलना। भारत का एक मुख्य त्योहार होली भी बसंत ऋतु में मनाई जाती है। इस वर्ष मकर संक्रांति पर विशेष योग बन रहा है जो बेहद फलदायी बताया है। आज सूर्य के साथ पांच अन्य ग्रह (सूर्य, शनि, बृहस्पति, बुध और चंद्रमा) मकर राशि में विराजमान हुए हैं। सूर्य देवता के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही एक माह से चला आ रहा खरमास भी आज समाप्त हो जाता है। बता दें कि खरमास में सभी मांगलिक कार्यों की मनाही होती है इसलिए मकर संक्रांति से खरमास समाप्त होते ही मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाते हैं। यह त्योहार देवता सूर्य (भगवान सूर्य) को समर्पित है और यह सूर्य के पारगमन के पहले दिन को मकर में चिह्नित करता है। मकर संक्रांति के दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाता है।
उत्तर भारत में मकर संक्रांति के पर्व को ‘खिचड़ी’ भी कहा जाता है :-
उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी का पर्व भी कहा जाता है । इस दिन स्नान-ध्यान करके खिचड़ी का दान-पुण्य भी किया जाता है । यहां हम आपको बता दें कि प्रयागराज, हरिद्वार, बनारस और उज्जैन समेत आदि तीर्थ स्थलों पर स्नान करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। मकर संक्रांति पर कुंभ स्नान का भी विशेष महत्व है । इस बार कुंभ का आयोजन हरिद्वार में किया जा रहा है। कुंभ का पहला विशेष स्नान मकर संक्रांति पर ही आयोजित होता है। धार्मिक मान्यता है कि कुंभ स्नान से मोक्ष प्राप्त होता है और कई प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है। मकर संक्रांति पर दान, स्नान और पूजा का महत्व धार्मिक मान्यता है कि इस दिन दान करने से जीवन की कई परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है । वहीं जीवन में सुख, शांति और समृद्धि भी आती है। देवी देवताओं का आर्शीवाद मिलता है। इस दिन घरों में खिचड़ी बनाई जाती है और दान दी जाती हैं। यहां हम आपको बता दें कि इस दिन पौष शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश होता है इसी वजह से इसे मकर संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति पर दान, स्नान और पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश आदि राज्यों में इस दिन लोग पतंग उत्सव भी मनाते हैं
आज से ही दक्षिण भारत में ‘पोंगल उत्सव’ की शुरुआत होती है :-
बता दे कि दक्षिण भारत में मकर संक्रांति पर्व के दिन ही पोंगल उत्सव की शुरुआत भी हो जाती है । 4 दिन तक चलने वाले इस उत्सव में लोग खुशियों में सराबोर रहते हैं ।14 जनवरी से शुरू हुआ ये त्योहार 17 जनवरी तक चलता है । चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार को नए साल के रूप में भी मनाया जाता है। पोंगल के पर्व पर सूर्यदेव की उपासना का महत्व है। सूर्यदेव की अराधना कर भक्त उनसे भरपूर फसल की प्रार्थना करते हैं । अंग्रेजी में पोंगल को हार्वेस्टिंग फेस्टिवल भी कहा जाता है। आज घरों में स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जा रहे हैं। पोंगल का त्योहार दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना में धूमधाम से मनाया जाता है। दक्षिण भारत में चार दिन तक मनाए जाने वाले पोंगल इस प्रकार है । भोगी पोंगल, यह पोंगल का मुख्य उत्सव है। इसे पोंगल के पहले दिन मनाया जाता है। थाई पोंगल, यह दूसरा दिन है, यह 15 जनवरी को मनाया जाता है। मट्टू पोंगल, यह तीसरा दिन है। यह 16 जनवरी को मनाया जाता है। कन्नुम पोंगल, यह पोंगल का अंतिम दिन है। यह 17 जनवरी को मनाया जाता है।