स्कूली पाठ्यक्रमों में जम कर हुआ इतिहास का खेलवाड़ ‘एक धर्म को टारगेट कर निचा दिखाने की लगी थी होड़’

देश की तत्कालीन सराकरो द्वारा स्कूली स्लेबस में मनचाहे ढंग से तथ्यों को परोसने पर राष्ट्रवादी विचारक अमित श्रीवास्तव की विशेष लेख :-

NCERT की पुस्तकों से हटाई गई पंक्ति- गोडसे एक ब्राह्मण था और एक चरमपंथी हिंदुओं का अखबार निकालता था….
प्रश्न है कि गोडसे की पहचान सिर्फ “एक ब्राह्मण” के तौर पर रखा ही क्यों गया?
ब्राह्मण कहने का क्या तातपर्य था?
स्कूली बच्चों में एक जाति विशेष के प्रति घृणा भरने के लिए रखा गया या जेएनयू में नित्य लगते नारे “ब्राह्मणों भारत छोड़ो ” को वैचारिक न्यायोचित ठहराने के लिए किया गया था?
यदि पूर्व की सरकार के द्वारा गोडसे को ब्राह्मण बताया गया तो फिर यह भी क्यों नहीं बताया कि गोडसे के कृत का बदला महाराष्ट्र के कई चितपावन ब्राह्मणों की हत्या कर लिया गया? जैसा 1984 में भी इंदिरा गांधी की मौत का बदला हजारों सिखों को काट कर लिया गया?
प्रश्न ये है कि स्कूली पाठ्यक्रम में अपराधी की पहचान उसकी जाति से करने वाले आतंकवादियों का धर्म क्यों नहीं बताते?
क्यों नहीं पढ़ाते कि इस्लाम को स्थापित करने के लिए टीपू सुल्तान ने हजारों हिंदुओं का नरसंहार किया?
इस्लाम के प्रचार प्रसार के लिए भी औरंगजेब हिन्दू मंदिरों को तोड़ रहा था?

गोडसे की पहचान यदि ब्राह्मण से है तो नाम के आगे पंडित कहलवाने वाले पंडित नेहरू के बारे में ये क्यों नहीं पढ़ाया गया कि नेहरू एक ब्राह्मण नेता थे जिन्होंने डॉ आंबेडकर को संविधान सभा मे चयनित न होने देने के लिए एक ही संसदीय क्षेत्र में तीन बार दौरा कर रहे थे। डॉ आंबेडकर को ब्राह्मण नेहरू ने उनका इस्तीफा पत्र भी सदन में पढ़ने नहीं दिया था।