अद्भुत परंपरा : तमिलनाडु में मकर संक्रांति पर जलीकट्टू का किया गया आयोजन, बेहद खतरों से भरा होता है यह प्रतियोगिता

आज समूचे उत्तर भारत के राज्यों में मकर संक्रांति धूमधाम के साथ मनाई जा रही हैं। श्रद्धालु सुबह से ही श्रद्धालु नदियों में स्नान कर दान-पुण्य कर रहे हैं। अगर देश के साउथ राज्यों की बात करें तो यहां पोंगल फेस्टिवल धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है ।

वही पोंगल पर तमिलनाडु में सदियों से चला आ रहा जलीकट्टू खेल का आयोजन भी होता है। ‌हालांकि कोरोना महामारी बढ़ने की वजह से इस बार जलीकट्टू के आयोजन को लेकर संशय बना हुआ था। ‌लेकिन फिर भी आज जलीकट्टू का आयोजन कोरोना गाइडलाइन के अनुसार किया गया है। यह बेहद ही खतरनाक खेल माना जाता है। बता दें कि जलीकट्टू पर बैलों को पकड़ने की परंपरा है। हालांकि ये खेल खतरनाक है लेकिन सालों से ये परंपरा चली आ रही है। ये खेल इतना खतरनाक है कि अक्सर लोग इसमें घायल होते हैं जिन्हें तुरंत ही अस्पताल पहुंचाना पड़ता है। इसी वजह से कुछ साल पहले इस खेल पर सवाल खड़े हुए थे लेकिन परंपरा का हवाला देते हुए लोगों ने इसे नहीं छोड़ा।

 

इस दिन तमिलनाडु में प्राचीन समय से जलीकटु का होता रहा है आयोजन:

बता दें कि जलीकट्टू तमिल के दो शब्द जली और कट्टू से जोड़कर बनाया गया है। तमिल में जली का अर्थ है सिक्के की थैली और कट्टू का अर्थ है बैल की सींग। जलीकटु को तमिलनाडु के गौरव तथा संस्कृति का प्रतीक कहा जाता है। यह 2000 साल पुराना खेल है जो उनकी संस्कृति से जुड़ा है। जल्लीकट्टू को तीन फॉर्मेट में खेला जाता है, जिसमें प्रतिभागी तय समय के भीतर बैल को कंट्रोल करते हैं और उसकी सींग में बनी सिक्कों की थैली हासिल करते हैं। प्राचीन काल में महिलाएं अपने पति को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थीं। यह ऐसी परंपरा थी, जो योद्धाओं के बीच काफी लोकप्रिय है। जो योद्धा बैलों को काबू में कर लेता था, उनको महिलाएं पति के रूप में चुनती थीं। जलीकट्टू को पहले सल्लीकासू कहते थे, बाद में इसका नाम बदल दिया। जो व्यक्ति लंबे समय तक बैल को काबू में रख लेता है, उसे सिकंदर की उपाधि देने की मान्यता है।

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