देवभूमि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में प्रदेश में चल रही प्रदेश सरकार ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के मामले में देश के कई राज्यों को पीछे छोड़ते हुए आगे निकल गया है। सीएम रावत की भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति पर उत्तराखंड ने आज राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे कई बड़े राज्यों के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
सीएम त्रिवेन्द्र रावत के नेतृत्व में पिछले साढ़े तीन वर्षो से प्रदेश सरकार ने अनेकों कदम उठाये हैं जिनके तहत कई विभागों में 2017 से पूर्व चले आ रहे भ्रष्टाचार पर पूरी तरह लगाम लगा दी गई है। ऐसे में उत्तराखंड के बतौर मुख्यमंत्री पद शपथ लेने के साथ ही सीएम रावत ने स्पष्ट कर दिया था कि प्रदेश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति होगी। आपको ज्ञात होगा कि सरकार बनने के तुरंत बाद सीएम रावत के पहल पर ही एनएच 74 मामले में एसआइटी के गठन के साथ ही दर्जनों लोगों के जेल भेजते ही सीएम रावत ने अपने वचन की प्रतिबद्धता जाहिर कर दी थी।
सीएम रावत की जीरो टालरेंस की नीति पर प्रदेश सरकार अब तक भ्रष्टाचार के लगभग ढाई दर्जन मामलों में कड़ी कार्यवाही करके 55 से अधिक दोषी अधिकारियों और कर्मचारियों को जेल पहुंचा चुकी है। सीएम रावत ने अनेकों बार इस बात को दोहराया है कि उत्तराखंड सरकार प्रारंभ से ही भ्रष्टाचार पर जीरो टालरेंस की नीति अपनाई है एवं इसके तहत दलालों की पूरी चेन का सफाया कर रही है।
ऐसे में त्रिवेन्द्र सरकार द्वारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाये गये अभियान में खाद्य विभाग में ऊधम सिंह नगर जिले में सरकार ने करीब 600 करोड़ रुपये का चावल घोटाला पकड़ा। वही छात्रवृत्ति घोटाले की जांच में एसआइटी द्वारा लगभग 20 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। साथ ही उत्तराखंड पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) में करोड़ों रुपये की बकाया राशि की वसूली में लापरवाही बरतने पर कड़ी कार्रवाई की गई। खास कर प्रदेश सरकार ने खनन पट्टों की ई-नीलामी की प्रक्रिया लागू कर अनियमितताओं की सभी संभावनाएं समाप्त कर दी हैं।
बता दे कि वर्ष 2019 के ट्रांसपेरेंसी इंडिया के सर्वे के अनुसार देश के कई राज्यों में रिश्वतखोरी के मामलों में उत्तराखंड का स्थान उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों से नीचे रहा है। वही उत्तराखंड में इन राज्यों के मुकाबले कम लोगों को सरकारी कामकाज के लिए रिश्वत देनी पड़ी। कारण यह है कि त्रिवेन्द्र सरकार ने सरकारी कामकाज में पारदर्शिता रखा तथा आम जनता का सरकारी अधिकारियों और सरकारी कर्मचारियों से संपर्क को भी सीमित किया गया। इसमें ऑनलाइन तरीके का भी इस्तेमाल किया गया।