देहरादून/अंजना कुमारी : आज नवरात्रि के पहले दिन हम माँ शैलपुत्री की पूजा करते है जिन्हें माता के नौ रूपों में से पहला रूप मानी जाती हैं और नवरात्रि के पहले दिन उनकी पूजा होती है। उनका नाम शैल (पर्वत) और पुत्री (बेटी) से बना है, जिसका अर्थ “पर्वत की पुत्री”। यह नाम उन्हें इसलिये दिया गया क्योंकि उनका जन्म हिमालय पर्वत के राजा हिमवान के घर हुआ था। शैलपुत्री को पर्वतराज की पुत्री के रूप में जाना जाता है और वह शक्ति और साहस का प्रतीक हैं।
जानिए, माँ शैलपुत्री कि कहानी :-
माँ शैलपुत्री का वर्णन पौराणिक कथाओं में मिलता है। कहा जाता है कि माँ शैलपुत्री पिछले जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती का विवाह भगवान शिव से हुआ था। एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया गया। सती इस अपमान से आहत हो गईं और उन्होंने यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इस घटना के बाद सती ने पर्वतराज हिमालय के घर शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। उन्होंने कठोर तपस्या की और भगवान शिव को फिर से पति रूप में प्राप्त किया।
माँ शैलपुत्री की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। इस दिन भक्तजन माँ से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रत रखते हैं और उनकी विधिपूर्वक पूजा करते हैं। माँ शैलपुत्री अपने भक्तों को शक्ति, साहस और धैर्य प्रदान करती हैं, जिससे वे जीवन की कठिनाइयों का सामना कर सकें। उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है। वे वृषभ (बैल) पर सवार होती हैं, जो उनके स्थिर और मजबूत स्वभाव का प्रतीक है।
माँ शैलपुत्री की पूजा का आध्यात्मिक महत्व भी है। उनकी पूजा से आत्मा की शुद्धि होती है और शरीर के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होता है।