विचारणीय : इलेक्ट्रोलर बाउंड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ‘लोकतंत्र में अविश्वास के भाव को देगा जन्म’

नई दिल्ली/अमित श्रीवास्तव : इलेक्ट्रोलर बाउंड संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी निजी अथवा दलगत राय बनाने से पूर्व कुछ विषयों को समझना आवश्यक है। सुप्रीम कोर्ट क्या इस देश को कोममुनिस्ट राज्य बनाना चाहता है? क्या इस देश की जनता के प्रति उद्योगपतियों के प्रति विद्वेष फैलाना चाहता है? क्या देश की जनता के मन मे चुनी हुई सरकारों के प्रति एक अविश्वास पैदा करना चाहता है? यह आलेख सुप्रीम कोर्ट की आलोचना नहीं कर रहा किंतु इलेक्ट्रोलर बॉन्ड संबंधित फैसले के दुष्प्रभाव का विश्लेषण करता है।

बता दें कि भारत में जनता के पास सूचना का अधिकार है तो इस देश के सभी नागरिकों समेत उद्योगपतियों के पास भो निजता का हनन निरोधी अधिकार भी है। इलेक्ट्रोलर बॉन्ड की जानकारी सार्वजनिक होने के बाद देश मे क्या माहौल बनेगा इसका आकलन क्या सुप्रीम कोर्ट ने किया है?। उद्योगपति अथवा व्यापारी ऐसा कोई राजनीतिक दल नहीं है जिसको चंदा नहीं देता और यह भी आज की सच्चाई है कि जिन पार्टियों की सरकारे विभिन्न राज्यों व केंद्र में है और ये सभी सरकारें समय समय अपने प्रदेश में इन्हीं उद्योगपतियों को निवेश के लिए निमंत्रण भी देती है। ये उद्योग जगत देश के सभी राज्यों में अपने उपक्रम अथवा प्लांट लगाते हैं। जिसजे लिए उस राज्य की सरकारें उन्हें जमीन उपलब्ध करवाती है। जिसको लेकर समय समय पर आंदोलन भी होते रहते हैं। वर्तमान में ही छतीसगढ़ की निवर्तमान काँग्रेज़ सरकार ने अडानी समूह को जमीनें उपलब्ध करवाई थी जिसका विरोध हुआ था। कुछ दिनों पूर्व ही तेलंगाना की वर्तमान काँग्रेज़ सरकार अडानी के साथ एक समझौता कर अडानी समूह को तेलंगाना में निवेश करने पर राजी करवाई है। जाहिर तौर पर इसके लिए तेलंगाना में जमीन भी उपलब्ध करवाई जाएगी।

वही अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तेलंगाना समेत जहाँ भी कोई उद्योगपति निवेश करेगा आम जनता के मन में ये ख्याल आएगा कि उद्योगपति ने चंदा दिया सरकार में बैठी पार्टी ने राज्य की जमीन दे दी। ऐसे तो जनता में राजनीतिक दलों, सरकारों व उद्योग जगत के प्रति विद्वेष बढ़ता ही जाएगा। ये अविश्वास लोकतंत्र के लिए निश्चित तौर पर घातक साबित होगा। इस स्थिति में पूरा भारत बंगाल बन जाएगा। साथ ही उद्योग जगत व सरकार के प्रति अविश्वास व विद्वेष के कारण ही अपनी ही सरकार के विरुद्ध धरना प्रदर्शन करते हुए कोमनिष्ट विचारधारा ने बंगाल को उद्योग विहीन बना दिया। कालांतर में नंदीग्राम में टाटा समूह के नैनो कर के प्लांट के विरुद्ध उठी आग में ममता बनर्जी ने अपनी राजनीतिक रोटियां सेक कर सत्ता में काबिज तो हो गई किंतु पश्चिम बंगाल को क्या मिला? ये बड़ा प्रश्न है।।

ऐसे में औद्योगीकरण का विरोध करते हुए बंगाल की जो स्थिति हुई क्या सुप्रीम कोर्ट संपूर्ण भारत की स्थिति वैसी ही बनाना चाहते हैं। ये विचारणीय प्रश्न है। सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर पुनः विचार करते हुए थोड़ा संशोधन करे। बाउंड के खरीददारों का विवरण केवल चुनाव आयोग में जमा हो जनता के बीच सार्वजनिक न किए जाए वरना सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला स्वस्थ लोकतंत्र को कमजोर करने वाला साबित होगा।