उत्तराखंड को जगाने अकेले ही निकल पड़े सेना के पूर्व अधिकारी ‘शिव सिंह रावत’ – जन उजाला विशेष

जाग उत्तराखंडी जाग, तू भी अपना हक मांग – शिव सिंह रावत

उत्तराखंड को अस्तित्व में आए आज 20 वर्ष से भी ज्यादा हो चुका है। आरंभ से लेकर अभी तक की सरकारों ने उत्तराखंड को उन सभी उत्तराखंडियों के सपनों का उत्तराखंड नहीं दे सके। यही कारण है कि भाजपा व कांग्रेस दोनों ही सरकारों के कार्यकाल के दौरान आम जनमानस कई मुद्दों को लेकर आंदोलन करती आई है।

परंतु आपको यह जानकर ताज्जुब होगा की भारतीय नौसेना में ऑफिसर के पद से रिटायर शिव सिंह रावत ने अकेले ही समूचे प्रदेश का भ्रमण कर छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं आयोजित कर उत्तराखंडियों को जगाने में जुट गए हैं।

बता दें कि इस वर्ष कि 26 जनवरी से शिव सिंह रावत ने अपनी कार में अपने जरूरत के सामान को लेकर प्रदेश भर में जन जागरूकता हेतु घर छोड़कर निकल चुके हैं इस दौरान उन्होंने कुमाऊं और गढ़वाल के कई स्थानों पर लोगों को जागरूक किया है।

वही हम आपको यह भी बता दें कि आखिरकार शिव सिंह रावत किन मुद्दों को लेकर जन जागरूकता में जुटे हैं। जन उजाला की टीम से बात कर उन्होंने बताया कि सरकार से उत्तराखंड में खेती और सिंचाई को लेकर उनकी खासी नाराजगी है। जाने क्या कुछ कहा शिव सिंह रावत ने :-

उन्होंने कहा कि जहां मैदान के किसानों के खेतों में फसलें हो रही हैं वही पहाड़ के खेत बंजर पड़े हैं।

मैदान के खेतों में सिंचाई की पर्याप्त सुविधा है वही पहाड़ों में सिंचाई तो दूर पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं है।

मैदान के खेतों तक सड़कें जा रही हैं वही पहाड़ के कई मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों के गांव तक भी सड़कें नहीं हैं

मैदान के एक खेत की कीमत करोड़ों तक है परंतु पहाड़ के गावों की भी कीमत करोड़ तक नहीं होगी।

मैदान वासियों के पास 5 से 10 लाख तक के ट्रैक्टर है तो वही पहाड़ियों के पास 1 जोड़ी बेल तक नहीं है।

मैदानी क्षेत्रों में अनाज हेतु उचित मंडी उपलब्ध है वहीं दूसरी तरफ पहाड़ के खेतों को बंदरों और सूअरों ने बर्बाद कर दिया है।

मैदान के खेतों में जगह जगह उचित चकबंदी है तो वहीं पहाड़ों में एक खेत पूर्व में तो दूसरा खेत 2 किलोमीटर पश्चिम में।

मैदान में आधुनिक सुविधाएं वाले अस्पताल हैं तो पहाड़ों में 30 से 40 किलोमीटर दूर स्थित अस्पतालों में भी डॉक्टर और दवाइयां गायब हैं। साथ ही यह अस्पताल सिर्फ रेफर सेंटर बन चुके हैं।

मैदान में रेल, मेट्रो, हवाई अड्डे व जगह-जगह बढ़िया सड़कें मौजूद हैं तो वही दूसरी तरफ पहाड़ों के सभी रेलवे स्टेशन अंग्रेजी हुकूमत द्वारा बनाए गए हैं।

मैदान वासी परिवार के साथ अपने पैतृक घरों में रह रहा है तो पहाड़वासी 1947 के भारत पाक बंटवारे की तरह अपने पैतृक घर बार को छोड़कर शहरों की मलिन बस्तियों में 20-25 गज के बंद मकानों में नौकर बनकर जीवन बिता रहा है।

ऐसे में उन्होंने यह भी कहा कि इतनी बुरी तरह से सरकार के नजरअंदाज करने के बाद भी और पहाड़ियों के सीधे सरल स्वभाव होने के कारण आज पहाड़वासी ने पहाड़ की दुर्गति कर दी है। इतनी बुरी दयनीय स्थिति (घर से बेघर) होने पर भी पहाड़ वासियों की आत्मा क्यों नहीं जग रही है यही मुझे समझ नहीं आ रहा है यही कारण है कि मैं अकेले ही 26 जनवरी से उत्तराखंड के पर्वतीय लोगों को जगाने हेतु नुक्कड़ सभाएं करने निकल चुका हूं।

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